स्कूली बस पर नहीं, कश्मीरियों के तालीम के सपने पर हमला है

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कश्मीर के शोपियां में स्कूली बच्चों की बस पर पत्थरबाजी की घटना जितनी दुखद और जघन्य है, उतनी ही आश्चर्यजनक भी है. क्योंकि तालीम को लेकर कश्मीर का मिजाज अलग है. एक आम कश्मीरी अपने बच्चे को अच्छी से अच्छी तालीम देना चाहता है, उसे अच्छे से अच्छे स्कूल में भेजना चाहता है. जो लोग कश्मीर से वाकिफ हैं वे इस बात को बखूबी जानते हैं. जो वहां नहीं गए हैं, उन्हें जानकर ताज्जुब होगा कि अगर आप श्रीनगर में घूमने निकल जाएं तो इंग्लिश मीडियम या कानवेंट कल्चर के स्कूलों की अच्छी तादाद दिखाई देगी. आमतौर पर कश्मीरी लोग भले ही पारंपरिक परिधान फिरन, एक लंबा सा चोगा, पहने नजर आएं, लेकिन जब पढ़ाई की बात आती है तो वे मदरसों को नहीं, इंग्लिश मीडियम स्कूल या सरकारी स्कूलों का रुख करते हैं. 


कई कानवेंट स्कूलों की इमारतें और सुविधाएं देखकर आप को लगेगा कि आप देहरादून के मशहूर स्कूलों को देख रहे हैं. स्कूली बच्चों के परिधान पारंपरिक नहीं होते हैं. लड़के लड़कियां पेंट शर्ट या स्कर्ट टॉप के साथ नीले या हरे रंग का ब्लेजर पहने दिखेंगे. हां, लड़कियां सिर पर पारंपरिक स्कार्फ जरूर लगाती हैं. उनके पास वैसे ही भारी स्कूल बैग होंगे जैसे देश के बाकी शहरी इलाकों के बच्चों के कंधों पर टंगे रहते हैं. चिनार के ऊंचे दरख्तों के साए में जब कोई स्कूली बस आपके बगल से गुजरती है और उसमें से सेब से लाल गालों वाले बच्चों का हल्ला-गुल्ला सुनाई देता है तो कश्मीर के भविष्य की बहुत आश्वस्तकारी तस्वीर जेहन में उभरती है.


आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि सेना ने यहां के दूरदराज इलाकों में जितने स्कूल खोले हैं उन सब में बच्चों का दाखिला कराने के लिए अभिभावकों में होड़ लगी रहती है. और सबसे ज्यादा दिलचस्प नजारा तो श्रीनगर में बने सेना के मुख्यालय के सामने रहता है. सबसे ज्यादा सुरक्षा इंतजाम और सबसे ज्यादा आतंकवादी खतरे का अंदेशा झेलने वाले इस मुख्यालय में सेना का स्कूल भी है. इस स्कूल में बच्चे का दाखिला कराने के लिए कश्मीर के आम आदमी से लेकर रसूखदार लोगों तक में होड़ लगी रहती है. लेखक जब कुछ महीने पहले कश्मीर गया था तो सेना के एक अफसर ने बताया था कि वे ऐसे बहुत से अलगावादियों को जानते हैं जिन्होंने बड़ी सिफारिशें लगाकर सेना के स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला कराया है. जब बात बच्चों के भविष्य की आती है तो अलगावादियों को भी सेना के स्कूल और नई तरह की तालीम पर ज्यादा भरोसा रहता है.


आपको ऐसे बहुत से कश्मीरी मिल जाएंगे जो हायर एडुकेशन के लिए अपने बच्चों का देश के दूसरे हिस्सों में भेजना चाहते हैं. देश की बहुत सी यूनिवर्सिटीज में आपको ऐसे कश्मीरी छात्र मिल जाएंगे जो भारत सरकार की उड़ान स्कीम तहत यहां पढ़ रहे हैं. एक बार एक उम्रदराज कश्मीरी ने लेखक से कहा था कि वह चाहता है कि उसके बच्चे इस खुली जेल से बाहर निकलें और बाकी भारत के बच्चों को देखें. वहां के रहन-सहन और तौर-तरीके समझें. वे महसूस तो करें कि वे सड़कें कैसी होती हैं जिनकी चौकीदारी के लिए हमेशा बखतरबंद वर्दी पहने हथियारबंद सिपाही तैनात नहीं होते. और उसे अच्छी तरह पता है कि इस खुली जेल से रिहाई की अगर कोई पहली सीढ़ी है तो वह है तालीम. इसीलिए कश्मीर में कभी स्कूली बच्चों को आतंकवादियों का निशाना नहीं बनना पड़ा.


स्कूली बस पर पत्थरबाजी कर अलगावादियों ने आम कश्मीरी की हसरतों पर हमला किया है. यह हमला अगर एक चुनौती है तो एक बड़ी संभावना भी है. संभावना इस रूप में कि भारत के सुरक्षा बलों ने पिछले कुछ वर्षों में बंदूके के दम पर सेना पार से चल रहे आतंकवाद को बुरी तरह कुचला है. इसके तोड़ में पाकिस्तान ने भारत में रह रही अपनी स्लीपर सेल को सक्रिय किया है. पिछले कुछ महीने में मारे गए ज्यादातर आतंकवादी विदेशी न होकर भारतीय मूल के हैं. 


जाहिर है स्थानीय होने के कारण इन्हें स्थानीय सहानुभूति भी मिलती है. लेकिन बच्चों पर हमले के बाद अगर भारत सरकार मानवीय संवाद को बढ़ावा दे तो इस सहानुभूति का रुख आतंकवादियों के बजाय भारत राष्ट्र की तरफ हो सकता है. यह संकट को अवसर में बदलने का मौका है. पत्थरबाजों की चोट से लहुलुहान मां बाप को यह भी बताने का मौका है कि वे अपने बच्चों को तालीम का रास्ता दिखाना चाहते हैं और अलगाववादी उन्हें तालिबान के रास्ते ले जाना चाहते हैं. लेकिन ये बातें सेना नहीं सांस्कृतिक संवाद से समझाई जा सकती है.




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स्कूली बस पर नहीं, कश्मीरियों के तालीम के सपने पर हमला है स्कूली बस पर नहीं, कश्मीरियों के तालीम के सपने पर हमला है Reviewed by Google Pustak on May 03, 2018 Rating: 5

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