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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पुणे
Updated Fri, 04 May 2018 11:00 AM IST
भारत में अंगूरों का निर्यात इस सीजन के आखिर में 10 फीसदी तक कम हो गया है। जहां बीते वर्ष भारत ने यूरोप में 7,700 अंगूरों के कंटेनर निर्यात किए थे वहीं इस वर्ष यह आंकड़ा घट कर 7,023 हो गया है। यह जानकारी ग्रेप्स एक्सपोर्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट जगन्नाथ खापरे ने दी। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र से तकरीबन 80 फीसदी अंगूरों का निर्यात किया जाता है जिसमें नासिक प्रमुख उत्पादक शहर है। बेहतर रिटर्न पाने के लिए कुछ उत्पादकों ने यूरोपियन मार्किट को निशाना बनाया, क्योंकि अंगूरों के उत्पादन की लागत उसकी मार्किट वेल्यू से कहीं ज्यादा थी।
इसके अलावा नासिक स्थित सह्याद्री फार्मस के चेयरमैन विकास शिंदे ने बताया कि आयात में गिरावट अप्रैल तक अधिक रही। उन्होंने कहा कि अंगूरों की मांग में इस बार कोई कमी नहीं थी लेकिन इसकी 40 फीसदी फसल सितंबर और अक्टूबर में हुई बेमौसम बरसात के कारण खराब हो गई। वहीं जितनी फसल बची थी उसकी गुणवत्ता में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। इसके बावजूद भी मार्च में इसका निर्यात जारी रहा बावजूद इसके कि किसानों की डिमांड पूरी नहीं हो सकी। बता दें लाल अंगूरों का इस्तेमाल वाइन बनाने के लिए किया जाता है।
खापरे ने बताया कि लाल अंगूरों में गिरावट दिसंबर के आखिर में ही दर्ज की गई थी और सीजन के आखिर तक इसमें गिरावट जारी रही। उन्होंने कहा कि फसल की पैदावार में आई गिरावट का सीधा असर उसके निर्यात पर पड़ा। जहां पहले करीब 1 टन अंगूरों का निर्यात किया गया था वहीं इस बार केवल 92,104 मैट्रिक टन का ही निर्यात हो सका। उन्होंने इसका कारण बांग्लादेश में बढ़ाई गई इम्पोर्ट ड्यूटी को भी बताया। जिसे 100 फीसदी तक कर दिया है। जिसका सीधा प्रभाव अंगूरों के निर्यात पर पड़ा।
खापरे ने बताया कि यह बेहद सराहनीय है कि अधिकतर किसान मिनिमल रेसिड्यू लिमिट्स (एमआरएल) के प्रति जागरुक हो गए हैं। जो किसानों की यूरोपियन मार्किट में पैठ को मजबूत करने में सहायता करेगा। उन्होंने कहा कि इस साल भारतीय अंगूरों का निर्यात कनाडा में भी किया गया है। साथ ही रूस में होने वाले निर्यात की मात्रा में भी पहले के मुकाबले वृद्धि हुई है।
भारत में अंगूरों का निर्यात इस सीजन के आखिर में 10 फीसदी तक कम हो गया है। जहां बीते वर्ष भारत ने यूरोप में 7,700 अंगूरों के कंटेनर निर्यात किए थे वहीं इस वर्ष यह आंकड़ा घट कर 7,023 हो गया है। यह जानकारी ग्रेप्स एक्सपोर्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट जगन्नाथ खापरे ने दी। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र से तकरीबन 80 फीसदी अंगूरों का निर्यात किया जाता है जिसमें नासिक प्रमुख उत्पादक शहर है। बेहतर रिटर्न पाने के लिए कुछ उत्पादकों ने यूरोपियन मार्किट को निशाना बनाया, क्योंकि अंगूरों के उत्पादन की लागत उसकी मार्किट वेल्यू से कहीं ज्यादा थी।
इसके अलावा नासिक स्थित सह्याद्री फार्मस के चेयरमैन विकास शिंदे ने बताया कि आयात में गिरावट अप्रैल तक अधिक रही। उन्होंने कहा कि अंगूरों की मांग में इस बार कोई कमी नहीं थी लेकिन इसकी 40 फीसदी फसल सितंबर और अक्टूबर में हुई बेमौसम बरसात के कारण खराब हो गई। वहीं जितनी फसल बची थी उसकी गुणवत्ता में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। इसके बावजूद भी मार्च में इसका निर्यात जारी रहा बावजूद इसके कि किसानों की डिमांड पूरी नहीं हो सकी। बता दें लाल अंगूरों का इस्तेमाल वाइन बनाने के लिए किया जाता है।
खापरे ने बताया कि लाल अंगूरों में गिरावट दिसंबर के आखिर में ही दर्ज की गई थी और सीजन के आखिर तक इसमें गिरावट जारी रही। उन्होंने कहा कि फसल की पैदावार में आई गिरावट का सीधा असर उसके निर्यात पर पड़ा। जहां पहले करीब 1 टन अंगूरों का निर्यात किया गया था वहीं इस बार केवल 92,104 मैट्रिक टन का ही निर्यात हो सका। उन्होंने इसका कारण बांग्लादेश में बढ़ाई गई इम्पोर्ट ड्यूटी को भी बताया। जिसे 100 फीसदी तक कर दिया है। जिसका सीधा प्रभाव अंगूरों के निर्यात पर पड़ा।
खापरे ने बताया कि यह बेहद सराहनीय है कि अधिकतर किसान मिनिमल रेसिड्यू लिमिट्स (एमआरएल) के प्रति जागरुक हो गए हैं। जो किसानों की यूरोपियन मार्किट में पैठ को मजबूत करने में सहायता करेगा। उन्होंने कहा कि इस साल भारतीय अंगूरों का निर्यात कनाडा में भी किया गया है। साथ ही रूस में होने वाले निर्यात की मात्रा में भी पहले के मुकाबले वृद्धि हुई है।
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